भोपाल का त्रासद नरसंहार
और शासक वर्ग का निरंकुश हृदयहीन व्यवहार,
इन सबके बावजूद हिन्दुस्तान के महानगरों
और कस्बों की सड़कों पर छाई हुई मुर्दा शांति,
यकीन नहीं आता कि इन्हीं सड़कों पर,
अत्याचार और अन्याय के खिलाफ़
कभी लड़ी गयी थी आज़ादी कि ज़ंग,
टीवी स्टूडियो में कुछ दिन हो हल्ला मचने के बाद
वहां भी अब पसर चुकी है नपुंसक शांति,
आख़िर न्यूज़ चैनलों को मिल गयी है अगली ब्रेकिंग न्यूज़।
ज़ुल्म का गहराता अँधेरा और यह ख़तरनाक शांति,
हमें उठानी ही होगी इसके खिलाफ़ आवाज़,
वरना अनगिनत त्रासदियों का कारण बनेगी यह बेदर्द शांति,
हमें तोड़नी ही होगी यह स्वार्थी चुप्पी,
क्योंकि हर निरंकुश शासक वर्ग के अस्तित्व
की शर्त होती है, शांत और ठंडी जनता।
इस ज़ालिम शासक वर्ग द्वारा फेके गए
टुकड़ों को लपककर शांत रहने ,
और आंसुओं के महासागर में
विलासिता के चंद टापुओं के बीच
अपना भी टापू बनाने की स्वार्थी हसरत कि बजाय
बेहतर होगा कि हम हिस्सा बन जायें
इस समुन्दर कि बेचैन लहरों का,
और तैयारी करें
भविष्य में उठने वाले ज्वार और भाटों का,
क्योंकि शांति की इस घुटन का जवाब
क्रांति का सैलाब ही हो सकता है।
Saturday, June 26, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment