Saturday, June 26, 2010
यह शांति कई त्रासदियों का कारण बनेगी!!
भोपाल का त्रासद नरसंहार
और शासक वर्ग का निरंकुश हृदयहीन व्यवहार,
इन सबके बावजूद हिन्दुस्तान के महानगरों
और कस्बों की सड़कों पर छाई हुई मुर्दा शांति,
यकीन नहीं आता कि इन्हीं सड़कों पर,
अत्याचार और अन्याय के खिलाफ़
कभी लड़ी गयी थी आज़ादी कि ज़ंग,
टीवी स्टूडियो में कुछ दिन हो हल्ला मचने के बाद
वहां भी अब पसर चुकी है नपुंसक शांति,
आख़िर न्यूज़ चैनलों को मिल गयी है अगली ब्रेकिंग न्यूज़।
ज़ुल्म का गहराता अँधेरा और यह ख़तरनाक शांति,
हमें उठानी ही होगी इसके खिलाफ़ आवाज़,
वरना अनगिनत त्रासदियों का कारण बनेगी यह बेदर्द शांति,
हमें तोड़नी ही होगी यह स्वार्थी चुप्पी,
क्योंकि हर निरंकुश शासक वर्ग के अस्तित्व
की शर्त होती है, शांत और ठंडी जनता।
इस ज़ालिम शासक वर्ग द्वारा फेके गए
टुकड़ों को लपककर शांत रहने ,
और आंसुओं के महासागर में
विलासिता के चंद टापुओं के बीच
अपना भी टापू बनाने की स्वार्थी हसरत कि बजाय
बेहतर होगा कि हम हिस्सा बन जायें
इस समुन्दर कि बेचैन लहरों का,
और तैयारी करें
भविष्य में उठने वाले ज्वार और भाटों का,
क्योंकि शांति की इस घुटन का जवाब
क्रांति का सैलाब ही हो सकता है।
और शासक वर्ग का निरंकुश हृदयहीन व्यवहार,
इन सबके बावजूद हिन्दुस्तान के महानगरों
और कस्बों की सड़कों पर छाई हुई मुर्दा शांति,
यकीन नहीं आता कि इन्हीं सड़कों पर,
अत्याचार और अन्याय के खिलाफ़
कभी लड़ी गयी थी आज़ादी कि ज़ंग,
टीवी स्टूडियो में कुछ दिन हो हल्ला मचने के बाद
वहां भी अब पसर चुकी है नपुंसक शांति,
आख़िर न्यूज़ चैनलों को मिल गयी है अगली ब्रेकिंग न्यूज़।
ज़ुल्म का गहराता अँधेरा और यह ख़तरनाक शांति,
हमें उठानी ही होगी इसके खिलाफ़ आवाज़,
वरना अनगिनत त्रासदियों का कारण बनेगी यह बेदर्द शांति,
हमें तोड़नी ही होगी यह स्वार्थी चुप्पी,
क्योंकि हर निरंकुश शासक वर्ग के अस्तित्व
की शर्त होती है, शांत और ठंडी जनता।
इस ज़ालिम शासक वर्ग द्वारा फेके गए
टुकड़ों को लपककर शांत रहने ,
और आंसुओं के महासागर में
विलासिता के चंद टापुओं के बीच
अपना भी टापू बनाने की स्वार्थी हसरत कि बजाय
बेहतर होगा कि हम हिस्सा बन जायें
इस समुन्दर कि बेचैन लहरों का,
और तैयारी करें
भविष्य में उठने वाले ज्वार और भाटों का,
क्योंकि शांति की इस घुटन का जवाब
क्रांति का सैलाब ही हो सकता है।
Monday, June 14, 2010
हम वो इंक़लाब हैं!!
रुके न जो, झुके न जो, दबे न जो, मिटे न जो
हम वो इंक़लाब हैं,ज़ुल्म का जवाब हैं
हर शहीद का,गरीब का हमीं तो ख़्वाब हैं।
तख़्त और ताज को, कल के लिए आज को
जिसमें ऊंच-नीच है ऐसे हर समाज को
हम बदल के ही रहेंगे वक़्त के मिजाज़ को
क्रांति कि मांग है, जंगलों में आग है
दासता की बेड़ियों को तोड़ते बढ़ जायेंगे .
लड़ रहे हैं इसलिए की प्यार जग में जी सके
आदमी का खून कोई आदमी न पी सके
मालिकों- मजूर के,
नौकरों हुजूर के
भेद हम मिटायेंगे, समानता को लायेंगे.
जानते नहीं हैं फ़र्क हिन्दू-मुसलमान का
मानते हैं रिश्ता इंसान से इंसान का
धर्म के देश के, भाषा के भेष के
फ़र्क को मिटायेंगे, समानता को लायेंगे
हुक्म चल सकेगा नहीं ज़ुल्मी हुक्मरान का
सारे जग पे हक हमारा, हम पे इस जहाँ का
गरीब को जगायेंगे, गरीबी को मिटायेंगे
एकता के जोर पे हर ज़ुल्म से लड़ जायेंगे.
---छात्र- युवा संघर्ष वाहिनी
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