मंदी ने आई. टी. इंडस्ट्री की खोल दी है पोल,
ख़ामोश हैं वो सभी जो बजा रहे थे आई.टी. सुपरपावर का ढोल।
सट्टा बाज़ार में हल्का हो गया है आई.टी. कंपनियों का तोल,
दहेज़ के बाज़ार में भी कम हो गया है सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स का मोल।
आई.टी. कंपनियों में छिड़ी है जोरदार बहस,
मंदी के दौर में भी कैसे मिटाई जाए मुनाफे की हवस।
इसी हवस को मिटाने के लिए शुरू हो गयी है छटनी,
जो छटनी से बच भी गए उनकी सैलरी शुरू हो गयी है कटनी।
चारों तरफ़ कास्ट कटिंग का माहौल है,
अभी तक दी गयीं सुख सुविधाएं धीरे धीरे हो रही गोल हैं।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स कर रहे हैं मंदी ख़त्म होने का बेसब्री से इंतजार,
पर निकट भविष्य में इसका दिखता नहीं कोई आसार।
और अगर मंदी ख़त्म भी हो गयी तो इसकी है क्या गारंटी
की फ़िर से नहीं फुलाया जाएगा ये गुब्बारा,
और फ़िर से नहीं फटेगा ये गुब्बारा।
सच तो यह है की सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो या मजदूर
इस पूंजीवादी व्यवस्था में सभी हैं पूँजी के गुलाम,
सभी का होता है शोषण, किसी का छुपकर , किसी का खुले आम।
इस शोषण का दिखता है एकमात्र इलाज,
एक नयी क्रांति और सही मायनों में समाजवाद।